अनुवाद- जयप्रकाश सिंह बंधु
लोक कथा की परंपरा में बाघ न कि मामा है और सियार न कि भगिना। दोनों की दोस्ती बहुत पुरानी है।
एक दिन सियार ने अपने मामा को अपने यहां निमंत्रित किया। पर उस दिन सियार ने भोजन की कोई व्यवस्था नहीं की। बाघ जब सियार के यहां पहुंचा तब सियार ने कहा, मामा थोड़ा बैठिए। मैंने और भी दो-चार लोगों को निमंत्रण दिया है, उन्हें बुला लाता हूं। ...यह कहकर सियार जो गया रात भर नहीं लौटा। इधर सारी रात बाघ मामा भोजन के इंतजार में बैठे रहे। थक-हार कर सुबह बाघ सियार को भला-बुरा कहता हुआ अपने घर चला गया।
कुछ दिनों के बाद बाघ ने भी सियार को अपने यहां निमंत्रित किया। सियार जब भोज खाने बाघ के यहां पहुंचा तब बाघ ने उसके सामने खूब मोटी-मोटी हड्डियां परोस दीं। सियार के लिए इन हड्डियों को चबाना बड़ा मश्किल था। हड्डी क्या थी साक्षात लोहा था। चबाने की कोशिश में सियार के दो-चार दांत टूट गए। जबकि बाघ को मोटी-मोटी हड्डियां बहुत पसंद थी। वह बड़े चाव से चबाने लगा और सारी हड्डियां खा गया। फिर सियार से पूछा, क्यों भगिना! पेट भरा तो?
सियार ने हंसते हुए कहा, हां मामा। मेरे घर में जिस प्रकार तुम्हारा पेट भरा था, उसी प्रकार आज मेरा भी भर गया। किंतु बाघ के प्रति तो बहुत क्रोध आया। करता क्या? सोचा इस बाघ मामा को सबक सिखाना ही होगा। जब तक इसे सबक नहीं सिखा लेता तब तक अपने देश भी नहीं जाऊंगा। और यह तय कर वह एक दूसरे देश चला गया।
इस नए देश में खूब गन्ने के खेत थे। सियार इन्हीं गन्नों के खेतों में रहने लगा। जी भर कर गन्ना चूसता और जो नहीं चूस पाता तोड़-फोड़ कर रख देता। किसानों ने जब यह देखा तो कहा, खूब बढ़िया तो। कौन दुष्ट सियार है जो हमारी फसलों को इस प्रकार से नष्ट कर रहा है? उसे तो मजा चखाना ही पड़ेगा। और फिर किसानों ने सियार को फंसाने के लिए एक विशेष खोयाड़ (पिंजड़ा या खोभार) तैयार किया।
यह खोयाड़(खोभार) लकड़ी से बनाया गया था जो दिखने में पालकी जैसा ही था। इसकी खासियत यह होती है कि इसके भीतर छोटा-मोटा शिकार रख दिया जाता है, और जैसे ही कोई जानवर इसके भीतर घुसता है वैसे ही दरवाजा बंद हो जाता है। गांव वाले दुष्ट जानवरों को इसी रूप में सदियों से काबू में करते आए हैं। सियार ने जब इस खोयाड़ को तैयार करते देखा तो मन ही मन कहा, यह मेरे लिए है न कि मामा के लिए? ऎसे सुंदर घर में तो मामा को ही रहना चाहिए।
तत्काल वह मामा के पास पहुंचा। बोला, मामा, एक बड़ा निमंत्रण आया है। राजा के लड़के की शादी है। वहां हम गाना गाएंगे और आप बजाइगा। और भोज जो मिलेगा उसका तो कहना ही क्या? उन्होंने तो हमारे लिए पालकी भी भेजी है। ...मामा जाइएगा?
बाघ लालच में आ गया। कहा, जाऊंगा क्यों नहीं? कहीं ऎसा निमंत्रण भी छोड़ा जाता है? फिर उन्होंने तो पालकी भी भेजी है।
सियार ने बाघ मामा को और विश्वास में लिया। कहा, और क्या? कोई ऎसा-वैसा पालकी है? आप तो कभी ऎसे पालकी में चढ़े भी न होंगे।
इस प्रकार बाघ और सियार बतियाते हुए उस गन्ने के खेत के किनारे पहुंचे जहां खोयाड़ तैयार था। बाघ ने जब पालकी को देखा तो थोड़ा संदेह हुआ। कहा, सिर्फ पालकी भेजी है? ढोने वाले कहार कहां हैं?
इस पर सियार ने कहा, हमलोगों के पालकी में बैठते ही कहार भी आ जाएंगे।
बाघ ने फिर पूछा, अरे! पालकी में डंडा नहीं है जो?
सियार ने बाघ की शंका दूर करते हुए कहा, मामा! डंडा कहार साथ लाएंगे।
बाघ आश्वस्त होकर जैसे ही पालकी में चढ़ा, पालकी का दरवाजा धड़ाम से बंद हो गया। पर उसमें जंतु देखकर बाघ बड़ा खुश हुआ।
सियार ने बाहर से आवाज लगायी, मामा! दरवाजा क्यों बंद कर दिया? हम घुसेंगे कैसे?
इस पर बाघ ने जवाब दिया, तुम्हें अंदर आने की जरुरत नहीं। अब निमंत्रण हम ही खाएंगे।
सियार ने कहा, ठीक है मामा! पेट भर कर खूब बढ़िया से भोज खाइए। ... कम मत खाइएगा।... कहकर सियार वहां से हंसते-हंसते अपने देश लौट गया।
इधर किसानों ने जब देखा कि खोयाड़ में बाघ फंसा है तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। खबर पूरे गांव में आग की तरह फैली। भाला, बरछी, हंसुआ, फरसा, लाठी, डंडा जिसे जो मिला वही हाथ में लेकर बाघ महाशय को देखने खोयाड़ के पास पहुंचा। फिर क्या था? अति उत्साह में गांव वालों ने बाघ मामा को पीट-पीट कर मार डाला।
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