सबका हित चाहने वाली रचना ही साहित्य है। किसी के लिए वह ब्रह्मानंद है तो किसी के लिए जादूई प्रभाव। वह हमारे भीतर के विकार को निकाल देता है। दृष्टि को परिष्कृत करता है। संस्कार डालता है। परंपरा से बह रही ज्ञान-धारा को बचाए रखता है। जितना हम साहित्य के रहस्य को जानते जाते हैं वह उतना ही रहस्य बनता जाता है। साहित्य के रसास्वादन की आदत जो डाल लेगा वह कभी पथभ्रष्ट हो ही नहीं सकता। वह हमें मुश्किल समय में संबल देता है।
Tuesday 28 February 2012
अबकी आम नहीं बौराए
मधुमती, राजस्थान साहित्य अकादमी, 1996 में प्रकाशित
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