अनुवाद- जयप्रकाश सिंह बंधु
बाघ को देखते ही सियार के मन में विचार आता है, ठहरो बाघ मामा! अभी मजा चखाते हैं।
नरहरिदास के भय से सियार ने अपनी पुरानी मांद छोड़ दी थी। (वही नरहरिदास जिसने सियार की मांद में अपना डेरा जमा लिया था। जिसकी लम्बी-लम्बी दाढ़ी थी, जिसे वह घड़ी-घड़ी हिलाता रहता था। वह सिंहों का मामा था। और जिसका एक-एक ग्रास (कौर) पचास-पचास बाघ के बराबर था। उसी नरहरिदास के भय से बाघ जिसने सियार को अपनी पूंछ में बांध रखा था, ऎसा भागा था कि बेचारा सियार तो घसीटाते-घसीटाते लहूलुहान हो गया था।)...इसी भय से अब वह उधर नहीं जाता था। उसने एक नयी मांद तलाश ली थी। इसी मांद के पास एक कुंआ था।
एक दिन सियार को घूमते-घामते नदी के किनारे एक चटाई मिली। वह उसे घसीट कर अपनी मांद के पास लाया और उस कुंए को ढंक दिया। फिर बाघ मामा के पास जाकर बोला, मामा! मेरा नया घर देखने नहीं गए? ....यह सुनकर बाघ तत्काल सियार का नया घर देखने चल पड़ा। सियार उसे अपनी मांद के पास लाया और पास ही बिछी हुई चटाई की ओर इशारा कर कहा, मामा! यहां बैठिए। जल-पान कीजिएगा?
जल-पान की बात सुनकर बाघ बेहद खुश हुआ। मारे खुशी के एक ही छलांग में जैसे ही वह चटाई पर बैठने गया, धड़ाम से कुंए के अंदर चला गया। तब सियार ने चुटकी ली, मामा! जल-पान पेट-भर कर कीजिए।.... कुछ भी नहीं छोड़िएगा।
संयोग से उस कुंए के भीतर पानी अधिक नहीं था। इसलिए बाघ डूब कर नहीं मरा। पहले बाघ तो बड़ा भयभीत हुआ, पर अंत में कोशिश कर बाघ बाहर निकल गया। बाहर निकलते ही चिल्लाया, कहां गया रे सियार का बच्चा? .....रुक तुझे बताता हूं।....किंतु सियार वहां कहां था? वह तो कब का भाग चुका था। खोजने पर भी सियार तब न मिला था।
इस घटना के बाद सियार ने बाघ मामा के यहां जाना ही छोड़ दिया था। नतीजा यह हुआ कि बेचारा सियार भोजन के अभाव में धीरे-धीरे अधमरा हो गया। तब सियार ने सोचा, इस तरह तो मैं मर ही जाऊंगा। इससे तो अच्छा है कि बाघ मामा के पास ही चला जाय। और किसी भी प्रकार से यदि मामा को खुश कर लिया गया तो काम बन सकता है।
यही सोचकर सियार बाघ मामा से मिलने उनके घर चला। पर खतरा अभी टला न था। अतः दूर से ही उसने मामा को नमस्कार का मुद्रा में... मामा! मामा! की पुकार लगानी शुरु कर दी। बाघ ने जब सियार का स्वर सुना तब उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। अरे! यह तो वही सियार है जिसने मुझे कुएं में गिराया था। पर सियार तो नमस्कार की मुद्रा में कुछ कहना चाहता था।
अभी बाघ कुछ करता इसके पहले ही वह दौड़ा मामा के पास आया और अपने दोनों हाथ जोड़ लिए। मामा की चरण-घूलि ली फिर कहने लगा, मामा! मुझे खोजने में आपको बड़ा कष्ट हो रहा था। यह देख मुझे रोना आ गया। आप मुझे बड़े प्रिय हैं। इसलिए मैं आपके पास चला आया। अब आप मुझे अपने ही घर में मार डालिए।
सियार के इस व्यवहार से बाघ तो एकदम विचलित हो गया। उसने सियार को मारने का ख्याल ही छोड़ दिया। पर धमकाते हुए सियार से पूछा, पाजी कहीं का! उस दिन मुझे कुएं में क्यों गिरा दिया था?
सियार ने जीभ को दांत से काटा, दोनों हाथ से अपने कान पकड़े फिर कहा, राम ! राम ! मैं आपको कहीं कुएं में गिरा सकता हूं?... मामा, वह तो वहां की मिट्टी ही इतनी नरम थी कि गड्ढा बन गया। आपने इतने जोर से छलांग क्यों लगायी थी? आपके जैसा वीर कोई दूसरा भी है क्या?
अपनी प्रशंसा सुनकर मूर्ख बाघ बड़ा खुश हुआ। कहा, हां भगिना। उस दिन मैं समझ नहीं सका था। इस तरह दोनों में फिर से दोस्ती हो गयी।
इसके बाद एक दिन नदी के तट पर सियार ने बीस फुट का एक मगरमच्छ देखा जो धूप खा रहा था। फिर क्या था? सियार जल्दी से बाघ के यहां पहुंचा। बोला, मामा-मामा! मैंने एक नाव खरीदी है। देखोगे? ..आओ।
मूर्ख बाघ सियार के साथ उस नदी के तट पर पहुंच गया जहां मगरमच्छ चुपचाप पड़ा धूप का आनंद ले रहा था। बाघ ने उसे सचमुच में नाव मान लिया। एक ही छलांग में कूदकर जैसे ही वह उसकी पीठ पर बैठा वैसे ही उस विशालकाय मगरमच्छ ने उसे अपने जबड़े में जकड़ लिया और नदी की गहराई में उतर गया।
बाघ मामा की मूर्खता पर सियार नाचते-नाचते अपने घर चला गया।