Wednesday 29 February 2012

बाघ मामा और स‌ियार भगिना (लोक कथा).......उपेंद्र किशोर राय चौधुरी


 अनुवाद- जयप्रकाश स‌िंह बंधु

बाघ को देखते ही स‌ियार के मन में विचार आता है, ठहरो बाघ मामा! अभी मजा चखाते हैं।

       नरहरिदास के भय स‌े स‌ियार ने अपनी पुरानी मांद छोड़ दी थी। (वही नरहरिदास जिसने स‌ियार की मांद में अपना डेरा जमा लिया था। जिसकी लम्बी-लम्बी दाढ़ी थी, जिसे वह घड़ी-घड़ी हिलाता रहता था। वह स‌िंहों का मामा था। और जिसका एक-एक ग्रास (कौर) पचास-पचास बाघ के बराबर था। उसी नरहरिदास के भय स‌े बाघ जिसने स‌ियार को अपनी पूंछ में बांध रखा था, ऎसा भागा था कि बेचारा स‌ियार तो घसीटाते-घसीटाते लहूलुहान हो गया था।)...इसी भय स‌े अब वह उधर नहीं जाता था। उसने एक नयी मांद तलाश ली थी। इसी मांद के पास एक कुंआ था।

        एक दिन स‌ियार को घूमते-घामते नदी के किनारे एक चटाई मिली। वह उसे घसीट कर अपनी मांद के पास लाया और उस कुंए को ढंक दिया। फिर बाघ मामा के पास जाकर बोला, मामा!  मेरा नया घर देखने नहीं गए? ....यह स‌ुनकर बाघ तत्काल स‌ियार का नया घर देखने चल पड़ा। स‌ियार उसे अपनी मांद के पास लाया और पास ही बिछी हुई चटाई की ओर इशारा कर कहा, मामा! यहां बैठिए। जल-पान कीजिएगा? 

        जल-पान की बात स‌ुनकर बाघ बेहद खुश हुआ। मारे खुशी के एक ही छलांग में जैसे ही वह चटाई पर बैठने गया, धड़ाम स‌े कुंए के अंदर चला गया। तब स‌ियार ने चुटकी ली, मामा! जल-पान पेट-भर कर कीजिए।.... कुछ भी नहीं छोड़िएगा।

      संयोग स‌े उस कुंए के भीतर पानी अधिक नहीं था। इसलिए बाघ डूब कर नहीं मरा। पहले बाघ तो बड़ा भयभीत हुआ, पर अंत में कोशिश कर बाघ बाहर निकल गया। बाहर निकलते ही चिल्लाया, कहां गया रे सियार का बच्चा? .....रुक तुझे बताता हूं।....किंतु स‌ियार वहां कहां था? वह तो कब का भाग चुका था। खोजने पर भी स‌ियार तब न मिला था।

        इस घटना के बाद स‌ियार ने बाघ मामा के यहां जाना ही छोड़ दिया था। नतीजा यह हुआ कि बेचारा स‌ियार भोजन के अभाव में धीरे-धीरे अधमरा हो गया। तब स‌ियार ने स‌ोचा, इस तरह तो मैं मर ही जाऊंगा। इससे तो अच्छा है कि बाघ मामा के पास ही चला जाय। और किसी भी प्रकार स‌े यदि मामा को खुश कर लिया गया तो काम बन स‌कता है। 

       यही स‌ोचकर स‌ियार बाघ मामा स‌े मिलने उनके घर चला। पर खतरा अभी टला न था। अतः  दूर स‌े ही उसने मामा को नमस्कार का मुद्रा में... मामा! मामा! की पुकार लगानी शुरु कर दी। बाघ ने जब स‌ियार का स्वर स‌ुना तब उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। अरे! यह तो वही स‌ियार है जिसने मुझे कुएं में गिराया था। पर स‌ियार तो नमस्कार की मुद्रा में कुछ कहना चाहता था।

         अभी बाघ कुछ करता इसके पहले ही वह दौड़ा मामा के पास आया और अपने दोनों हाथ जोड़ लिए। मामा की चरण-घूलि ली फिर कहने लगा, मामा!  मुझे खोजने में आपको बड़ा कष्ट हो रहा था। यह देख मुझे रोना आ गया। आप मुझे बड़े प्रिय हैं। इसलिए मैं आपके पास चला आया। अब आप मुझे अपने ही घर में मार डालिए।

       स‌ियार के इस व्यवहार स‌े बाघ तो एकदम विचलित हो गया। उसने स‌ियार को मारने का ख्याल ही छोड़ दिया। पर धमकाते हुए स‌ियार स‌े पूछा, पाजी कहीं का! उस दिन मुझे कुएं में क्यों गिरा दिया था?

       सियार ने जीभ को दांत स‌े काटा, दोनों हाथ स‌े अपने कान पकड़े फिर कहा, राम ! राम ! मैं आपको कहीं कुएं में गिरा स‌कता हूं?... मामा, वह तो वहां की मिट्टी ही इतनी नरम थी कि गड्ढा बन गया। आपने इतने जोर स‌े छलांग क्यों लगायी थी? आपके जैसा वीर कोई दूसरा भी है क्या?

      अपनी प्रशंसा स‌ुनकर मूर्ख बाघ बड़ा खुश हुआ। कहा, हां भगिना। उस दिन मैं स‌मझ नहीं स‌का था। इस तरह दोनों में फिर स‌े दोस्ती हो गयी।

       इसके बाद एक दिन नदी के तट पर स‌ियार ने बीस फुट का एक मगरमच्छ देखा जो धूप खा रहा था। फिर क्या था? स‌ियार जल्दी स‌े बाघ के यहां पहुंचा। बोला, मामा-मामा! मैंने एक नाव खरीदी है। देखोगे? ..आओ।

       मूर्ख बाघ स‌ियार के स‌ाथ उस नदी के तट पर पहुंच गया जहां मगरमच्छ चुपचाप पड़ा धूप का आनंद ले रहा था। बाघ ने उसे स‌चमुच में नाव मान लिया। एक ही छलांग में कूदकर जैसे ही वह उसकी पीठ पर बैठा वैसे ही उस विशालकाय मगरमच्छ ने उसे अपने जबड़े में जकड़ लिया और नदी की गहराई में उतर गया।

      बाघ मामा की मूर्खता पर स‌ियार नाचते-नाचते अपने घर चला गया।

                                        

बाघ का पालकी-प्रेम (लोक कथा) ........उपेंद्र किशोर राय चौधुरी


अनुवाद- जयप्रकाश स‌िंह बंधु      

लोक कथा की परंपरा में बाघ न कि मामा है और स‌ियार न कि भगिना। दोनों की दोस्ती बहुत पुरानी है।

       एक दिन स‌ियार ने अपने मामा को अपने यहां निमंत्रित किया। पर उस दिन स‌ियार ने भोजन की कोई व्यवस्था नहीं की। बाघ जब स‌ियार के यहां पहुंचा तब स‌ियार ने कहा, मामा थोड़ा बैठिए। मैंने और भी दो-चार लोगों को निमंत्रण दिया है, उन्हें बुला लाता हूं। ...यह कहकर स‌ियार जो गया रात भर नहीं लौटा। इधर स‌ारी रात बाघ मामा भोजन के इंतजार में बैठे रहे। थक-हार कर स‌ुबह बाघ स‌ियार को भला-बुरा कहता हुआ अपने घर चला गया।
       
    कुछ दिनों के बाद बाघ ने भी स‌ियार को अपने यहां निमंत्रित किया। स‌ियार जब भोज खाने बाघ के यहां पहुंचा तब बाघ ने उसके स‌ामने खूब मोटी-मोटी हड्डियां परोस दीं। स‌ियार के लिए इन हड्डियों को चबाना बड़ा मश्किल था। हड्डी क्या थी स‌ाक्षात लोहा था। चबाने की कोशिश में स‌ियार के दो-चार दांत टूट गए। जबकि बाघ को मोटी-मोटी हड्डियां बहुत पसंद थी। वह बड़े चाव स‌े चबाने लगा और स‌ारी हड्डियां खा गया। फिर स‌ियार स‌े पूछा, क्यों भगिना! पेट भरा तो?
     स‌ियार ने हंसते हुए कहा, हां मामा। मेरे घर में जिस प्रकार तुम्हारा पेट भरा था, उसी प्रकार आज मेरा भी भर गया। किंतु बाघ के प्रति तो बहुत क्रोध आया। करता क्या? सोचा इस बाघ मामा को सबक स‌िखाना ही होगा। जब तक इसे स‌बक नहीं सिखा लेता तब तक अपने देश भी नहीं जाऊंगा। और यह तय कर वह एक दूसरे देश चला गया।
       इस नए देश में खूब गन्ने के खेत थे। स‌ियार इन्हीं गन्नों के खेतों में रहने लगा। जी भर कर गन्ना चूसता और जो नहीं चूस पाता तोड़-फोड़ कर रख देता। किसानों ने जब यह देखा तो कहा, खूब बढ़िया तो। कौन दुष्ट स‌ियार है जो हमारी फसलों को  इस प्रकार स‌े नष्ट कर रहा है? उसे तो मजा चखाना ही पड़ेगा। और फिर किसानों ने स‌ियार को फंसाने के लिए एक विशेष खोयाड़ (पिंजड़ा या खोभार)  तैयार किया।  
      यह खोयाड़(खोभार) लकड़ी स‌े बनाया गया था जो दिखने में पालकी जैसा ही था।  इसकी खासियत यह होती है कि इसके भीतर छोटा-मोटा शिकार रख दिया जाता है, और जैसे ही कोई जानवर इसके भीतर घुसता है वैसे ही दरवाजा बंद हो जाता है। गांव वाले दुष्ट जानवरों को इसी रूप में  स‌दियों स‌े काबू में करते आए हैं। स‌ियार ने जब इस खोयाड़ को तैयार करते देखा तो मन ही मन कहा, यह मेरे लिए है न कि मामा के लिए? ऎसे स‌ुंदर घर में तो मामा को ही रहना चाहिए।
      तत्काल वह मामा के पास पहुंचा। बोला, मामा, एक बड़ा निमंत्रण आया है। राजा के लड़के की शादी है। वहां हम गाना गाएंगे और आप बजाइगा। और भोज जो मिलेगा उसका तो कहना ही क्या? उन्होंने तो हमारे लिए पालकी भी भेजी है। ...मामा जाइएगा?
    बाघ लालच में आ गया। कहा, जाऊंगा क्यों नहीं? कहीं ऎसा निमंत्रण भी छोड़ा जाता है? फिर उन्होंने तो पालकी भी भेजी है।
   स‌ियार ने बाघ मामा को और विश्वास में लिया। कहा, और क्या? कोई ऎसा-वैसा पालकी है? आप तो कभी ऎसे पालकी में चढ़े भी न होंगे।
    इस प्रकार बाघ और स‌ियार बतियाते हुए उस गन्ने के खेत के किनारे पहुंचे जहां खोयाड़ तैयार था। बाघ ने जब पालकी को देखा तो थोड़ा स‌ंदेह हुआ। कहा, स‌िर्फ पालकी भेजी है? ढोने वाले कहार कहां हैं?
   इस पर स‌ियार ने कहा, हमलोगों के पालकी में बैठते ही कहार भी आ जाएंगे।
   बाघ ने फिर पूछा, अरे! पालकी में डंडा नहीं है जो?
  स‌ियार ने बाघ की शंका दूर करते हुए कहा, मामा!  डंडा कहार स‌ाथ लाएंगे।
बाघ आश्वस्त होकर जैसे ही पालकी में चढ़ा, पालकी का दरवाजा धड़ाम स‌े बंद हो गया। पर उसमें जंतु देखकर बाघ बड़ा खुश हुआ।
   स‌ियार ने बाहर स‌े आवाज लगायी, मामा!  दरवाजा क्यों बंद कर दिया? हम घुसेंगे कैसे?
इस पर बाघ ने जवाब दिया, तुम्हें अंदर आने की जरुरत नहीं। अब निमंत्रण हम ही खाएंगे।
     स‌ियार ने कहा, ठीक है मामा! पेट भर कर खूब बढ़िया स‌े भोज खाइए। ... कम मत खाइएगा।... कहकर स‌ियार वहां स‌े हंसते-हंसते अपने देश लौट गया।
   इधर किसानों ने जब देखा कि खोयाड़ में बाघ फंसा है तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। खबर पूरे गांव में आग की तरह फैली। भाला, बरछी, हंसुआ, फरसा, लाठी, डंडा जिसे जो मिला वही हाथ में लेकर बाघ महाशय को देखने खोयाड़ के पास पहुंचा। फिर क्या था? अति उत्साह में गांव वालों ने बाघ मामा को पीट-पीट कर मार डाला। 
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Tuesday 28 February 2012

अबकी आम नहीं बौराए

मधुमती, राजस्थान स‌ाहित्य अकादमी, 1996 में प्रकाशित