हो जाय न गड़बड़ काम
भय यह मुझे सताता है।
सुबह उठाते, सैर कराते
रबड़ी-मलाई खिलाते हैं
उलझाते हमें सवालों में
रामायण पूरी सुनाते हैं।
गणित पूछो, खूब बताते
व्याकरण के तो पंडित हैं
विज्ञान उनकी नस-नस में
इतिहास अपना सुनाते हैं।
ढेरों संस्मरण के मालिक वे
क्या वे नहीं बताते हैं
बांट अनुभव गदगद होते
फिर आराम फरमाते हैं।
दादा जी का कोट है कहता
बहुत पुराना साथी हूं
छड़ी घड़ी और छाता कहता
मैं तो उनका ब्रांड हूं।
चश्मा उनका बड़ा निराला
धोती की क्या शान है
दादाजी तो जीते-जागते
सभ्यता की पहचान हैं।
जब दादाजी की सेवा करता
आशीष हमें खूब देते हैं
सादगी उनकी, डांट-नसीहत
अब तो मेरी संस्कृति है।
दादाजी का कोट-वोट सब
हमें बहुत रुलाता है
दादाजी नस-नस में अब
याद खूब वे आते हैं।
***
भय यह मुझे सताता है।
सुबह उठाते, सैर कराते
रबड़ी-मलाई खिलाते हैं
उलझाते हमें सवालों में
रामायण पूरी सुनाते हैं।
गणित पूछो, खूब बताते
व्याकरण के तो पंडित हैं
विज्ञान उनकी नस-नस में
इतिहास अपना सुनाते हैं।
ढेरों संस्मरण के मालिक वे
क्या वे नहीं बताते हैं
बांट अनुभव गदगद होते
फिर आराम फरमाते हैं।
दादा जी का कोट है कहता
बहुत पुराना साथी हूं
छड़ी घड़ी और छाता कहता
मैं तो उनका ब्रांड हूं।
चश्मा उनका बड़ा निराला
धोती की क्या शान है
दादाजी तो जीते-जागते
सभ्यता की पहचान हैं।
जब दादाजी की सेवा करता
आशीष हमें खूब देते हैं
सादगी उनकी, डांट-नसीहत
अब तो मेरी संस्कृति है।
दादाजी का कोट-वोट सब
हमें बहुत रुलाता है
दादाजी नस-नस में अब
याद खूब वे आते हैं।
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