प्रकाशित,जनपथ, मई अंक 2014
बच्चों पर कुछ कविताएं
(1)
बच्चे बना रहे हैं पहाड़
नदी
पेड़
हरे-भरे खेत
और एक चमचमाता हुआ सूरज।
बच्चों की पेंटिंग्स् में बचे हैं गांव
बची है हरियाली
नीला आसमान
बच गया है-
एक बड़ा-सा मैदान।
(2)
बच्चे बना रहे हैं-
ऊंची-ऊंची इमारतें
जगह-जगह कूड़ों के ढेर
और ढेर सारे लोग।
बच्चों की इस पेंटिग्स् में
कहीं नहीं है पेड़
नहीं है नदी
सूरज भी नहीं
बस धुआं ही धुआं है
सिगनल लाल है
जाम में फंसा,छटपटाता
एक शहर है।
(3)
वैन में, पुलकार में
ठुसम-ठास स्कूल जाते ये बच्चे
डेस्क के लिए लड़ते ये बच्चे
इस खबर से बेखबर हैं ये बच्चे
कि शुरु कर चुके हैं
अपनी-अपनी जगह बनाने की
एक भयानक लड़ाई।
(4)
स्कूल के ये बच्चे
खेल रहे हैं कक्षा में-
हैंड-क्रिकेट
टीचर के प्रवेश करते ही
थम जाता है अचानक
उनका यह खेल।
फिर चुपके से न जाने कब
उतर जाते हैं वे
खेल के काल्पनिक मैदान में
और झटकने लगते हैं हाथ
ऊंगलियों के इशारों पर ही
बनने लगते हैं रन।
बिन मैदान के
बिन बल्ला घुमाए
बिन दौड़े ही
बन जाते हैं ढेर सारे रन
और हो जाते हैं-
क्लीन बोल्ड।
(5)
बाग-बगीचों से होकर
खेलते-कूदते ये बच्चे
गप्पे हांकते
स्कूल से लौटते ये बच्चे
रंग-बिरंगे पहरावे में
पुस्तकों के बोझ से मुक्त
उन्मुक्त, स्वच्छंद ये बच्चे
नम्बर लाने की होड़ में शामिल नहीं हैं
विकास बनाम पिछड़े
गांव के बच्चे हैं ये।
(६)
कम्प्यूटर पर ये बच्चे
खेल रहे हैं युद्ध
थामें हैं हाथों में- एके-४७, ग्रिनेड
रच रहे हैं कोई चक्र-व्यूह
और बढ़ रहे हैं आतंक के साए में, धीरे-धीरे
मार रहे हैं आतंकवादी
चारों ओर खून ही खून है
सन्नाटा ही सन्नाटा है
बच्चे क्यों खेल रहे हैं युद्ध?
बच्चे क्यों थाम रहे हैं बंदूक?
और कहीं आपने पढ़ा, सुना या देखा था?
पेन- फाइटिंग?
इसे कविता की तरह नहीं-
एक भयानक खबर की तरह पढ़ा जाना चाहिए।
-०-
बच्चों पर कुछ कविताएं
(1)
बच्चे बना रहे हैं पहाड़
नदी
पेड़
हरे-भरे खेत
और एक चमचमाता हुआ सूरज।
बच्चों की पेंटिंग्स् में बचे हैं गांव
बची है हरियाली
नीला आसमान
बच गया है-
एक बड़ा-सा मैदान।
(2)
बच्चे बना रहे हैं-
ऊंची-ऊंची इमारतें
जगह-जगह कूड़ों के ढेर
और ढेर सारे लोग।
बच्चों की इस पेंटिग्स् में
कहीं नहीं है पेड़
नहीं है नदी
सूरज भी नहीं
बस धुआं ही धुआं है
सिगनल लाल है
जाम में फंसा,छटपटाता
एक शहर है।
(3)
वैन में, पुलकार में
ठुसम-ठास स्कूल जाते ये बच्चे
डेस्क के लिए लड़ते ये बच्चे
इस खबर से बेखबर हैं ये बच्चे
कि शुरु कर चुके हैं
अपनी-अपनी जगह बनाने की
एक भयानक लड़ाई।
(4)
स्कूल के ये बच्चे
खेल रहे हैं कक्षा में-
हैंड-क्रिकेट
टीचर के प्रवेश करते ही
थम जाता है अचानक
उनका यह खेल।
फिर चुपके से न जाने कब
उतर जाते हैं वे
खेल के काल्पनिक मैदान में
और झटकने लगते हैं हाथ
ऊंगलियों के इशारों पर ही
बनने लगते हैं रन।
बिन मैदान के
बिन बल्ला घुमाए
बिन दौड़े ही
बन जाते हैं ढेर सारे रन
और हो जाते हैं-
क्लीन बोल्ड।
(5)
बाग-बगीचों से होकर
खेलते-कूदते ये बच्चे
गप्पे हांकते
स्कूल से लौटते ये बच्चे
रंग-बिरंगे पहरावे में
पुस्तकों के बोझ से मुक्त
उन्मुक्त, स्वच्छंद ये बच्चे
नम्बर लाने की होड़ में शामिल नहीं हैं
विकास बनाम पिछड़े
गांव के बच्चे हैं ये।
(६)
कम्प्यूटर पर ये बच्चे
खेल रहे हैं युद्ध
थामें हैं हाथों में- एके-४७, ग्रिनेड
रच रहे हैं कोई चक्र-व्यूह
और बढ़ रहे हैं आतंक के साए में, धीरे-धीरे
मार रहे हैं आतंकवादी
चारों ओर खून ही खून है
सन्नाटा ही सन्नाटा है
बच्चे क्यों खेल रहे हैं युद्ध?
बच्चे क्यों थाम रहे हैं बंदूक?
और कहीं आपने पढ़ा, सुना या देखा था?
पेन- फाइटिंग?
इसे कविता की तरह नहीं-
एक भयानक खबर की तरह पढ़ा जाना चाहिए।
-०-
you write all the poems very nicely and i appel to you to update your blog fast
ReplyDeletebecause we are waiting for another poem
शुभम, अरे इन सबका फोटो निकालो और अपना लगाओ। डरने की आवश्यकता नहीं है।
DeleteSir aapka poems Bahut acha hai...
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