Thursday 8 August 2013

स‌ुमंत और उसकी मां ( बाल कहानी)


                           -जयप्रकाश स‌िंह बंधु



आज स‌ुमंत बहुत रोया है। उसे लगा कि वह निहायत अकेला पड़ गया है। आंखों स‌े ऎसी धारा बही है कि तकिया पूरा भींग गया। वह उठा, हाथ मुंह धोया, गमछे स‌े मुंह पोछने के बाद स‌ीधे जाकर मां की तसवीर के स‌ामने खड़ा हो गया। मां अपने बेटे को देखकर मुस्कुरा रही है। मानो पूछ रही हो- क्या हुआ स‌ुमंत?...ये आंसू क्यों?...नहीं रोते मेरे अच्छे बेटे!...चलो बिस्कुट चाय लो!...और मानो मां चाय लाने ही चली गयी हो। स‌ुमंत मां को निहारता कहीं खो गया है......
     सुमंत जब स‌ात स‌ाल का रहा होगा तभी उसके पिता जी चल बसे थे। उसे याद पड़ता है कि पिता उसे स्कूल छोड़ने जाते थे। स‌ाइकिल पर वह बैठ जाता और स‌मय स‌े स‌ेंट थॉमस चर्च स्कूल पहुंच जाता था। मां बताती थी कि उसके पिता एक प्राइवेट फैक्ट्री में काम करते थे। एक दिन स‌ाधारण बुखार हुआ। कई दिनों तक ठीक न हुआ तो डाक्टर को दिखाया गया। टेस्ट में डेंगू निकला।
फिर वे जिला अस्पताल में कई दिनों तक भर्ती रहे। पर उन्हें नहीं बचाया जा स‌का। उनके जाने के बाद स‌ुमंत के लिए तो मां ही स‌ब कुछ थी। बचपन के प्रारंभिक वर्षों में तो स‌ुमंत यह जान ही नहीं पाया था कि उसकी मां क्या काम करती है। शायद इसकी जरूरत भी न रही हो। मां ने भी कभी उसे यह स‌ब नहीं बताया। बस वह इतना जानता था कि वह अदालत में काम करने जाती है। उसके
स्कूल
 जाने के बाद काम पर जाती है और स्कूल की छुट्टी से पहले लौट भी आती है। स‌ुमंत को डेढ़ बजे स्कूल स‌े ले जो आना होता है। स‌ुमंत अपनी मां के स‌ंग जिस घर में रहता था वह किराये का एक टाली बाड़ी था। इसी घर में स‌ुमंत धीरे-धीरे बड़ा हुआ।
       
     बहुत बाद में वह जान गया कि उसकी मां उसके स्कूल जाने के बाद पूरी स‌ब्जी बनाती है और उसे लेकर अदालत जाती है। 
अदालत के बाहर कहीं बैठकर लोगों को नाश्ता कराती है और यह स‌ब काम बारह बजे तक वह निपटा लेती है। फिर शाम को वह कहीं स‌े थैला भर कर फूल लाती है, और उन्हें लोगों के घर में बांट आती है। बचपन स‌े मां उसे यही स‌िखाती आ रही है कि कोई काम छोटा नहीं होता स‌ुमंत। बस स‌िर ऊंचा करके जीने की कोशिश करनी चाहिए। कभी किसी के स‌ामने हाथ फैलाना नहीं चाहिए। अगर ऎसा हम कर स‌कें तो छोटा काम भी इज्जत वाला बन जाता है। मां की बातों का स‌ुमंत पर गहरा प्रभाव पड़ता है। वह भी बचपन स‌े परिश्रमी हो गया है। वह जम कर अपनी पढ़ाई करता है। घर के स‌ामानों को न केवल स‌हेज कर रखता है बल्कि स‌ाफ-स‌फाई में भी लगा रहता है। ऎसा करके वह अपनी मां की स‌हायता करता है।
      स‌ुमंत को यह एहसास है कि उसकी मां बहुत ही मुश्किल स‌े उसे इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ा रही है। कई बार तो उसे ऎसा भी लगा कि अब वह इस नामी स्कूल में पढ़ ही नहीं पायेगा। अचानक फीस बढ़ जाने स‌े एक बार आंदोलन हो गया था। कई दिनों तक लोगों ने रास्ता जाम किया। स्कूल बंद रहा। पर कई मीटिंग के बाद भी फीस न घटी। लोगों को मान लेना पड़ा। स‌ुमंत की
मां ने भी हिम्मत नहीं हारी थी। स‌ुमंत से स‌िर्फ इतना ही कहा था- मेरे पास इस बुरे स‌मय के लिए पैसे हैं। तुम पढ़ाई पर ध्यान दो। बाद में स‌ुमंत को पता चला था कि कि उसकी मां ने हेडमास्टर को स‌ुमंत की इच्छा और घर की माली-हालत बताकर फीस में थोड़ी बहुत कमी करवा ली थी। बेहद शांत स्वभाव के स‌ुमंत को स‌ब चाहते थे, हेडमास्टर भी। वह स्कूल में बच्चों व शिक्षकों में काफी लोकप्रिय था।
        स‌ुमंत के कंधे पर जब हाथ रखकर उसके हिन्दी के स‌र कहते, स‌ुमंत, कुछ बनना है, तुम्हें खूब पढ़ना है, तो मानो उसे नया जोश मिल जाता। स‌ुमंत को याद है स‌र न जाने पढ़ाने के क्रम में कितने ऎसे उदाहरण देते जहां यह दिखाने की कोशिश करते  कि मुसीबतों को झेलने वाला, उनसे लड़ने वाला ही अंततः वीर बनता है। परिश्रमी को स‌फलता अवश्य मिलती है। स‌र ने उसके मन में यह बिठा दी थी कि झूठ जीवन को ठीक उसी प्रकार ले डूबता है जिस प्रकार किसी नाव में कोई छेद हो जाय। नाव का डूबना तय है, कोई नहीं बचा स‌कता। इसलिए झूठ तो किसी भी हालत में नहीं बोलना चाहिए। स‌ुमंत का यह खास गुण था कि वह गुरुजनों की बातों को ध्यान स‌े स‌ुनता था और उसे गांठ बांध लेता था।  जीवन में भरसक उसे उतारने की कोशिश भी करता था। स‌ुमंत को हिन्दी के स‌र इसलिए भी अच्छे लगते थे क्योंकि वे उसे बीच बीच में बाल पत्रिकाएं दिया करते थे और खास कहानियों को जरूर पढ़ने को कहते थे। स‌ुमंत को कहानियों को पढ़ने का चश्का लग गया था। इससे उसे बड़ा स‌ंबल मिलता था। इसी तरह स‌ुमंत दसवीं में पहुंच गया। बोर्ड में उसने चौरानबे प्रतिशत अंक हास‌िल किए।

     बारहवीं में उसने स‌ाइंस में दाखिला लिया। उसकी रूचि स‌ाइंस में थी पर स‌मस्या यह खड़ी हो गयी कि स‌ाइंस में पढ़ने के लिए अतिरिक्त ट्यूशन की जरूरत थी और इसके लिए उसके पास पैसे नहीं थे। मां किसी तरह स‌े स्कूल का खर्च तो निकाल स‌कती थी जैसा कि करती आयी थी पर ट्यूशन के लिए खर्च निकालना मुश्किल था। स‌ुमंत ने भी ठान लिया कि वह स्कूल की पढ़ाई पर ही
निर्भर रहकर खूब परिश्रम करेगा, कोई न कोई राह अवश्य निकलेगी। हुआ भी वही। वह जिस स्कूल में पढ़ता था वहां के प्रायः स‌भी शिक्षक यह जानते थे कि उसकी मां स‌ुमंत को किस तरह स‌े पढ़ा रही है। इसलिए उसे इसी स्कूल में स‌ाइंस लेने की स‌लाह शिक्षकों ने दी थी। स‌ुमंत को तो स‌ब जिस तरह स‌े हो स‌के मदद करने के लिए तैयार रहते थे। यह स‌ब उसके स्वभाव का ही नतीजा था। झिझक के बावजूद उसे गुरुजनों के आदेश के स‌ामने झुकना पड़ा और ट्यूशन का बैच ज्वाइन करना पड़ा। पर स‌ुमंत ने भी ठान लिया था वह ऎसे गुरुजनों को गुरु दक्षिणा स‌मय आने पर अवश्य देगा। उन्हें जीवन में कभी भूलेगा नहीं।

        उस दिन स‌ुमंत के स्कूल की छुट्टी थी। पता नहीं उसके मन में क्या आया कि उसने तय कर लिया कि आज वह मां के स‌ाथ अदालत जाएगा और मां की मदद करेगा। मां तो शुरु में नहीं चाहती थी कि वह उसके स‌ाथ जाए पर उसकी जिद के आगे उसे हार मानना पड़ा। स‌ुमंत देख रहा है कि उसकी मां को ढ़ेर सारे लोग अच्छी तरह स‌े पहचानते हैं। लोगों की भीड़ लग गयी है। ये वे ग्राहक हैं जो हमेशा खाते हैं और अच्छी तरह जानते हैं कि यदि विलंब हुआ तो घर के जैसी स्वाद वाली पूरी स‌ब्जी खत्म हो जायेगी, नहीं मिलेगी। उसकी मां कागज के प्लेट में पूरी स‌ब्जी ग्राहकों को दे रही है और वह पैसे ले रहा है। लोगों के पूछने पर मां बड़े गर्व स‌े बता रही है कि यही उसका लड़का है। स‌ाइंस लेकर पढ़ता है। स‌ेंट थॉमस स्कूल में है। लोग स‌ुमंत को यह कहते नहीं थक रहे हैं कि बेटा तुम्हारी मां तुम्हारे लिए बहुत कष्ट उठा  रही है। अक्सर तुम्हारे बारे में बताती रहती है, खूब मन लगा कर पढ़ना। बड़ा
होकर तुम्हें इंजीनियर तो बनना ही पड़ेगा। स‌ुमंत भी स‌हमति में स‌िर हिला देता है। बोल तो कुछ पाता नहीं । आज स‌चमुच में उसने एक अलग दुनिया देखी है जहां मां और उसके शुभचिंतक बहुत हैं। मां केवल बेचती ही नहीं है बल्कि उसने एक स‌म्मानजनक स‌ंबंध भी ग्राहकों स‌े बना रखे हैं। शायद यह स‌ब उनके स‌ाफ-सुथरे भोजन व अच्छे व्यवहार की वजह स‌े ही है। मां के प्रति उसकी श्रद्धा आज कई गुणा बढ़ गयी है।
    स‌ुमंत यह अच्छी तरह स‌े जानता है कि मां के परिश्रम का उत्तर उसे कैसे देना है। वह भी मां की तरह हर परिस्थिति स‌े लड़ने वाला बनना चाहता है। मां ने उसे यह भी शिक्षा दी है कि पढ़ाई-लिखाई स‌े व्यक्ति का मनोबल बढ़ता है। अतः पढ़ना उसके जीवन का ध्येय बन चुका है। फिर स‌ुमंत पढ़ाई में ऎसा डूबा कि एक लंबा स‌मय बड़ी तेजी स‌े कब निकल गया पता ही न चला। बारहवीं की परीक्षा उसने नब्बे प्रतिशत अंक स‌े पास की। ज्वांइट में भी उसका रैंक इतना आ गया कि खड़कपुर आई.आई.टी में उसे इलेक्ट्रकिल
इंजीनियरिंग में दाखिला मिल गया। उसे याद है उसकी मां कलकत्ता स‌े खड़करपुर हॉस्टल में अक्सर पहुंच जाया करती थी, यद्यपि वह मां को कई बार मना कर चुका था कि वह परेशान न हो। असल में पांच स‌ाल की इस लंबी पढ़ाई में मां एकदम अकेली जो पड़ गयी थी। अतः बीच-बीच में वह स‌ुमंत को देख आया करती थी।
     मां का स‌पना था स‌ुमंत। और वह स‌पना उस दिन पूरा हो गया था जब उसे रेलवे में इलेक्ट्रिकिल इंजीनियरिंग के पद पर नियुक्त कर लिया गया था। उसकी पोस्टिंग छत्तीस गढ़ के रायपुर में हो गयी थी। स‌ाल भर स‌े वह अपनी मां के स‌ाथ रेलवे के क्वाटर में रह रहा था। स‌ुमंत मां को हर प्रकार स‌े स‌ुख देना चाहता था। दोनों बेहद खुश थे। स‌ुमंत की मां ने परिश्रम स‌े अपनी और स‌ुमंत की जिंदगी बदल दी थी। पर स‌मय भी एक स‌ा कहां रहता है? नियति को तो कुछ:और ही मंजूर था.....

      आज कई दिन हो चुके हैं। स‌ुमंत घर स‌े बाहर नहीं निकला है। उसकी मां अचानक इस प्रकार स‌े इस स‌ंसार को छोड़ देगी इसके लिए स‌ुमंत किसी भी प्रकार स‌े तैयार न था। अतः यह उसके लिए स‌बसे बड़ा आघात है। वह पूरी तरह स‌े टूट चुका है। बीच-बीच में उसके नए दोस्त आकर उसे स‌मझा-बुझाकर चले जाते हैं....आज स‌ुमंत मां के स‌ंग बिताए पलों को याद कर बहुत रोया है।
मां की मुस्कुराती तसवीर के स‌ामने वह खड़ा है। वहीं पर मां द्वारा मढ़वाया जीवन का स‌ार भी टंगा है जिसे वह बार-बार पढ़ रहा है- "स‌ब कुछ नष्ट हो जाने के बाद भी बचा रहता है भविष्य।"

       स‌ुमंत इस वाक्य को बचपन स‌े देखता आ रहा है, पर इसके महत्व को आज ज्यादा स‌मझ स‌का है। उसके पिता के मरने के बाद मां को भी लगा होगा कि उसका सारा स‌ंसार उजड़ गया, स‌ब कुछ नष्ट हो गया। तब शायद इस वाक्य ने ही जरूर मां को स‌ंबल दिया होगा। यह मंत्र उसके पिता ने मां को दी थी। आज मां भले ही तसवीर में चली गयी हो पर उसे लग रहा है कि वह उसे अजस्र शुभकामनाएं दे रही हैं। रह- रह कर उसे यह आभास होता है कि मां उसे पुकार रही है, उठ खड़ा होने की प्रेरणा दे रही है, जीवन का  स‌ार स‌मझा रही है.......वह भी अब अपने मन को दृढ़ कर रहा है। वह महसूस रहा है कि आज उसी में मां के स‌ारे स‌पने जीवित हैं। अपनी अच्छाइयों के स‌ाथ उसके पिता और मां भी शायद उसी में जिंदा हैं। स‌ुमंत कमरे स‌े निकल क्वाटर के खुले बागान में आ गया है। वहां कुछ गुलाब के फूल खिले हुए हैं। ये स‌ब मां ने ही लगवाएं हैं। वह इन्हें देख मन को मजबूत कर रह है, उन्हें पानी स‌े स‌ींच रहा है। पर मन बार-बार अतीत में जा उसे रह-रह कर भावुक बना रहा है......वह स‌मझने की कोशिश कर रहा .....यही दुनिया की रीति है...यही परम्परा है....सुमंत के स‌ामने यह स‌ब  मान लेने के अलावा चारा भी क्या है?


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