प्रकाशित, बाल प्रभा 2012,शाहजहांपुर
यह तो हो ही नहीं सकता कि आपने मुझे देखा ही न हो। जी, खूब देखा है आपने। सब्जी के थैले में, किचेन में, फ्रीज में तो आप मुझे बचपन से देखते आ रहे हैं। सलाद में, सॉस के रूप में न जाने कितनी बार आपने मुझे खाया होगा। मुझे जिस किसी सब्जी में डाल दो, मैं उसका स्वाद बढ़ा देता हूं। दाल में, मीट में, मछली में, डोसा में चाहे जहां भी मुझे डाल दो, मैं उसे जायकेदार बना देता हूं। पाव भाजी हो या भेलपुरी मेरे बगैर तो बन ही नहीं सकता। चाहो तो मुझे पकाकर आलू का भरता (चोखा) में डाल दो, या मेरा कचूमर निकाल कर मेरी चटनी ही क्यों न बना लो, हर हाल में मैं बड़ा स्वाद देता हूं। शीत ऋतु में मेरा गरमा-गरम सूप पीकर तो देखो, क्या खूब ताकत देता हूं। समोसे में, चावमीन में जो लाल-लाल सॉस आप खाते हैं, वह मैं ही तो हूं।
मेरी मांग को देखते हुए आजकल मेरी खेती सालों भर होने लगी है। अब मैं केवल शीत ऋतु में उपजने वाला सब्जी नहीं रह गया हूं। ग्रीन-हाउस में मुझे सालों भर उगाया जा रहा है, तो आसानी से यह समझा जा सकता है कि मेरी अहमीयत कितनी बढ़ गयी है। मैं कितने काम की चीज हूं। पर मुझे दुख इस बात का है कि कुछ बच्चे मुझे पसंद नहीं करते। सुना है कि मुझे चाव से नहीं खाते। मेरे खट्टेपन को लेकर उन्हें शिकायत रहती है। तो मैं उन्हें अपने कुछ गुणों को बताने पर मजबूर हूं। अपने मुंह मियां मिट्ठू बनना मुझे अच्छा तो नहीं लग रहा। पर क्या करूं? बच्चे मुझे न खाकर अपना कितना अहित कर रहे हैं, कैसे बताऊं?
आप सोच रहे होंगे कि मैं किसी पेड़ पर फलता हूं, आम-सेव की तरह। तो आपको गलतफहमी है। मैं तो छोटे-छोटे बेलनुमा पौधों में ही गुच्छे के गुच्छे फल जाता हूं। मेरे भार के कारण मेरी लताएं जमीन पर पसर जाती हैं। किसान भाई लोग मुझे बाजार ढ़ोते-ढ़ोते थक जाते हैं। आप मेरे खेत से यदि गुजरेंगे तो आपके हाथ-पांव सब टमाटरमय हो जाएंगे। मतलब मैं अपनी सुगंधि से उन्हें भर देता हूं। मैं बहुत प्रभावी हूं। आप चाहे तो मुझे गमले में भी उगा सकते हैं। दो महीने में ही फलने लगूंगा।
खेतों में जैसे ही मैं पकने लगता हूं, गांव के बच्चे मुझे तोड़कर बड़े चाव से खा जाते हैं। जैसे कोई सेव खा रहा हो। मैं सेव से कम थोड़े ही हूं। सेव में विटामिन ए मिलता है तो मुझमें भी ए होता है। अब आपको यह पता होना ही चाहिए कि विटामिन ए की कमी से कौन-कौन से रोग हो सकते हैं। विटामिन ए की कमी से त्वचा और आंखों में खराबी आने लगती है। आंखों की दृष्टि कमजोर होने लगती है जिससे रात को कम दिखाई देता है। तो मैं अंधापन को दूर करता हूं। आपकी हड्डी मजबूत करता हूं। मुझमें विटामिन सी भी पाया जाता है। इसकी कमी से आपका वजन घटने लगता है, मसूड़े ढ़ीले पड़ने लगते हैं। तो मैं आपका वजन सही रखने में मददगार हूं। विटामिन बी और विटामिन के भी मैं रखता हूं। जब आप खेलते-कूदते हैं, और कहीं कट-फट जाता है तो रक्त जमाने में मैं मदद करता हूं। आपके घाव को तुरंत ठीक कर आपको पुनः खेलने लायक बना देता हूं। मेरे भीतर पानी की मात्रा बहुत अधिक होती है, सो आपके शरीर में पानी की कमी नहीं होने देता। अगर आपको मेरी बात पर यकीन नहीं हो रहा तो किसी डॉक्टर अंकल से पूछ सकते हैं।
यह तो हुई विटामिन्स की बात। अब उन मिनरल्स के नाम गिनाता हूं जो मुझमें पाए जाते हैं। पोटेशियम, मैग्नेशियम, फॉस्फोरस, क्लोराइड आदि को जमीन से खींचकर मैं खास कर आपके लिए लाता हूं। ये सभी विभिन्न तरह से आपके शरीर के विकास में सहयोगी हैं। मैं थायरॉक्सीन एसीड बनाने में सहायक हूं जिससे आप जो भी भोजन करते हैं उसे पचाने में मदद मिलती है। आपने देखा होगा कि सलाद के रूप में विशेष सजावट के साथ मैं इसलिए खाया जाता हूं ताकि आपका भोजन आसानी से पच जाए। इसके अलावा थायराइड-ग्लैंड, पिट्यूटरी ग्लैंड, एड्रनेल ग्लैंड के साथ-साथ मैं मेटाबोलिज्म को भी ठीक रखता हूं। सच मुझे भी अपने इतने सारे गुणों के विषय में जानकारी नहीं थी। वह तो मेरे एक मित्र टमाटर लाल ने यह सब बातें बताई थी जो डॉक्टर की बगिया में ही पैदा हुआ था, वहीं पला-पढ़ा था। इसी तरह एक दूसरे मित्र ने एक और रोचक कथा सुनाई थी।
एक सिन्हा जी थे। एक बार वे नर्सरी से मेरे कुछ नन्हे-नन्हे पौधे लेकर आए और अपने क्वाटर के बागान में लगा दिया। मैं जल्दी ही लग गया और लगा लहलहाने। वे एक दो दिन बीच करके मुझे पानी से खूब नहलाते, मेरे आस-पास की मिट्टी को कोड़ कर नरम बनाते। घास आदि उखाड़ फेंकते। तन-मन से वे मेरी सेवा में जुटे हुए थे। मैं भी खूब हरा-भरा होकर उनकी बगिया की शान बढ़ाने लगा था। अब मुझमें फूल भी आने लगे थे। तभी एक रात क्वाटर की गलियों में विचरण करने वाली एक लावारिस गाय ने बाड़ को फांद कर मुझ पर हमला बोला। उसने खूब दावत उड़ाई। बड़ी बेरहमी से मुझे चर लिया गया। जिस तरह से फांद कर उस गाय ने मुझ पर हमला बोला था, वह गाय कम घोड़ी अधिक लगती थी। सुबह जब सिन्हा जी मुझे निहारने पहुंचे तो उन्हें घोर निराशा हुई। उनके सपने पर पानी फिर चुका था। उनकी आंखों में आंसू को देख मुझे भी दुख हुआ था। वे अंग्रेजी के शिक्षक थे, और एक शिक्षक को रोते हुए मैंने पहली बार देखा था। वह भी मामूली पौधों के लिए। मेरे प्रति उन्होंने जो प्रेम दिखाया था, बस मैंने भी ठान लिया। मैं खूब पनपा। जल्दी ही मैं पहले से ज्यादा हरा-भरा हो गया। इतना फला कि सिन्हा जी खाते-खाते थक गए। फिर उन्होंने मुझे अपने मित्रों के यहां भिजवाया। आस-पड़ोस में बंटवाया। वे स्वयं पड़ोसियों के यहां मुझे ले जाते। गेट पर से ही आवाज लगाते- मुखर्जी बाबू..ओ मुखर्जी बाबू...लीजिए..ये टमाटर खाइये, मेरे बागान के हैं। जब मुखर्जी बाबू कहते- एतो लाल-लाल, बड़ो-बड़ो...तब सिन्हा जी गर्व से झूम उठते। लोग उन्हें मुस्कुराते हुए धन्यवाद देते। यह देखकर मुझे अपार खुशी होती। सिन्हा जी ने टमाटर बांट-बांट कर खूब नाम कमाया। मैंने भी उनसे यह सीखा कि परोपकार से बढ़कर इस दुनिया में कोई बड़ा धर्म नहीं है। पर-सेवा में गजब का आनंद है।
बड़ी-बड़ी कंपनियां आज मुझे बेचकर माला-माल हो रही हैं। वहीं बेचारा किसान जो मुझे उगाता है, कंगाल बना हुआ है। इन कंपनियों की वजह से ही आजकल मेरे भाव कुछ ज्यादा ही चढ़े हुए हैं। मेरे चढ़े हुए भाव पर जब संसद में हंगामा मचता है, तब मेरे महत्व को आसानी से समझा जा सकता है। मुझे लेकर जो ओछी राजनीति होती है वह मुझे पसंद नहीं। अरे, मुझे उगाने के लिए किसानों को प्रेरित करो, उन्हें सही मूल्य दिलाओ, ताकि मेरे भाव सदा नीचे रहे। मैं म्यूजिम की चीज नहीं बनना चाहता। गृहणियों के किचेन में, आपकी थाली में ही मेरी शोभा बढ़ती है। इतना सुनने के बाद भी क्या आप मुझे खाना पसंद नहीं करेंगे?
मुझे तो खुशी तब होगी जब आप मुझे चाव से खाने लगेंगे। सलाद के रूप में खाकर जब मुझे अपने शरीर में पहुंचा देंगे, तभी तो मैं अपना काम तन-मन-धन से कर सकूंगा। मैं सचमुच में लाल हूं। मुझे खाकर आप भी लाल हो जाएं, फिर इस देश के लाल बने। यही तो मेरी तमन्ना है। ...धीरज से मेरी लंबी कथा सुनने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
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