पेशेवर आदमी भी
हमारे कुछ पत्रकार भाइयों को
यहां कन्फ्यूजन है
कि जब कोई मर रहा हो लाइव
तब वे क्या करें?
बनाते रहें सनसनी-खेज खबरें
या फिर उसकी जान बचाएं?
आखिर एक पेशेवर पत्रकारिता क्या करे?
तो मैं उनसे पूछना चाहता हूं
कि जब मर रहे होंगे तुम्हारे मां-बाप कहीं
बचाओ-बचाओ कर भाग रही होगी पत्नी सड़क पर
डूब कर मर रहा होगा तुम्हारा बेटा या बेटी कहीं
या कोई भाई तुम्हारा-
ढो रहा होगा दाना मांझी* की तरह
कंधे पर लिए पत्नी की लाश
कई किलोमीटर तक अकेले ही
तब तुम क्या करोगे?
बनाते रहोगे सनसनीखेज खबरें?
चलाते रहोगे उसे टीवी पर दिन-रात?
पीटते रहोगे संवेदना के मर जाने की ढोल?
या समाज की पोल खोलते खोलते
स्वयं नंगे हो जाओगे?
मित्रों!
कोई पेशेवर आदमी भी
बाहर नहीं है
आदमी की परिभाषा से।
*सरकारी एंबुलेंस न मिलने के कारण उड़ीसा के दाना मांझी ने
कपड़े में लिपटे अपनी पत्नी की लाश को कई किलोमीटर तक अकेले ही कंधे पर लिए ढोया
था। साथ में उसकी एक बच्ची चल रही थी। सारा समाज तमाशबीन बना रहा है। मीडिया ने
पहले क्लीप बनायी फिर मदद भी की थी। पर इस घटना ने सबको झकझोरते हुए सभ्य समाज के
सामने कई प्रश्न उठाए।
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