Saturday 28 May 2011

विकास बनाम परंपरा

गरजा था यहीं कहीं पर
पूंजीवाद और राजनीति का बुलडोजर
हरे-भरे खेत हो गए जिससे लहूलुहान
पुलिस ने गिराई कई लाशें
फिर आत्म-हत्या का दौर तो 
कभी थमा ही नहीं...

प्लांट का क्या था?
कहीं भी आबाद हो स‌कता था बंजर जमीन पर
कंक्रीट के जंगल बसाने से पहले
सुन ली जाती किसानों की भी
महसूस लिया जाता
मिट्टी से कटने का
परंपरा से बेदखल होने का दर्द....

नींव डाली गयी जहां विकास की
दब गए वहां हजारों किसान
नष्ट हो गयी स‌दियों पुरानी एक परंपरा
उजड़ गयी एक ग्राम-संस्कृति
मिट्टी में मिल गयी
एक स‌भ्यता.....
     ***



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